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छठ पूजा 2024: जानिए महत्व, परंपरा और चार दिवसीय अनुष्ठानों का संपूर्ण विवरण

छठ पूजा हिन्दू धर्म का एक त्योहार है जिसमें उगते हुए सूरज के साथ डूबते हुए सूरज की पूजा की जाती है। इस त्योहार को भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि सूर्य षष्ठी, डाला छठ, प्रतिहार षष्ठी, छठी मैया पूजा। यह पूजा दीवाली के 6 दिन बाद होती है जैसे कि 2024 के अनुसार यह त्योहार 5 नवंबर से शुरू होकर 8 नवंबर तक है।

 

अब जानते छठ पूजा का महत्व:
छठ पूजा एक तरह का व्रत है जो बहुत कठीन होता है। इस दिन सुहागिन स्त्री और पुरुष रखते हैं। यह पूजा घर की सुख-समृद्धि, खुशहाली और मंगल कामना के लिए करते हैं। इस व्रत में लोग सूर्य देव और उनकी बहन छठी मइया की पूजा करते हैं और खुशहाली का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

माना जाता है छठ पूजा का शुरूआत महाभारत और रामायण के साथ जुड़ा हुआ है जैसे कि पांडव के पुत्र कर्ण, जो सूर्य देवता के भक्त थे, ने इस व्रत को किया था। कर्ण ने सूर्य देव से वरदान पाया था और अपनी शक्ति और तेज का श्रेय इस व्रत को देते थे। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि भगवान राम और सीता ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर भगवान सूर्य देव की पूजा की थी, और इसी दिन छठ व्रत रखने की शुरूआत हुई।

 

छठ पूजा की विवरण:

 

छठ पूजा के कुछ दिन पहले घर की साफ-सफाई होती है। यह पूजा 4 भागों और दिनों में बताई गई है जिसमें आता है नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य, उषा अर्घ्य।

 

नहाय-खाय: पहले दिन लोग शाकाहारी भोजन करते हैं जिसमें कद्दू, चने की दाल और चावल शामिल हैं। इस दिन बिना प्याज और लहसुन का खाना बनता है।

 

खरना: इस दिन जिस वक्त ने व्रत रखा दिनभर होता है और शाम को भोजन करते हैं जिसमें खीर और रोटी होती है। इस दिन आस-पास के लोगों को बोलते हैं शाम उन्हें प्रसाद देते हैं। पूजा के दौरान बर्तन का प्रयोग नहीं करते, सब भोजन केले के पत्ते पर दिया जाता है। उसके अगले दिन निर्जला व्रत होता है।

 

संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन प्रसाद बनाया जाता है जिसमें ठेकुआ शामिल है। इसके अलावा लौंग, बड़ी इलाइची, पान-सुपारी, अग्रपात, गड़ी-छोहड़ा, चने, मिठाइयाँ, कच्ची हल्दी, मूली एवं नारियल, सिंदूर और कई प्रकार के फल छठ के प्रसाद के रूप में शामिल होते हैं। वे अनुष्ठान करते हैं और डूबते सूर्य को “अर्घ्य” (जल) देते हैं, जो कृतज्ञता और श्रद्धा का प्रतीक है।

Chhath pooja

सुबह अर्घ्य: अंतिम दिन, भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भोर में पानी में लौटते हैं। यह त्योहार के अंत का प्रतीक है। अनुष्ठान के बाद, भक्त परिवार और दोस्तों के साथ प्रसाद बांटकर अपना उपवास तोड़ते हैं।  

छठ वाले दिन जिन लोगों ने व्रत रखा होता वो ब्रह्म मुहूर्त में उठ स्नान करके नदी में ताजा पानी से उसके बाद वो पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य देव और छठी मइया को नमन करते हैं। इस पूजा में 

लौंग, बड़ी इलाइची, पान-सुपारी, अग्रपात, गढ़ी-छोहड़ा, चने, मिठाइयां, कच्ची हल्दी, अदरक, केला, नींबू, सिंहाड़ा, सुथनी, मूली एवं नारियल, सिंदूर और कई प्रकार के फल छठ के प्रसाद के रूप में शामिल होते हैं।

शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है। सभी छठ व्रत एक पवित्र नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से स्त्रियां छठ के गीत गाती हैं। इसके बाद अर्घ्य दान सम्पन्न करती हैं। सूर्य को जल का अघ्र्य दिया जाता है और छठी माता के प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। सूर्यास्त के बाद सारा सामान लेकर सोहर गाते हुए सभी लोग घर आ जाते हैं और अपने घर के आंगन में एक और पूजा की प्रक्रिया प्रारंभ करते हैं। जिसे कोशी कहते हैं। यह पूजा किसी मन्नत के पूर्ण हो जाने पर या कोई घर में “शुभ कार्य” होने पर की जाती है। इसमें सात गन्ने, नए कपड़े से बांधकर एक छत्र बनाया जाता है जिसमें मिट्टी का कलश या हाथी रखकर उसमें दीप जलाया जाता है और उसके चारों तरफ प्रसाद रखे जाते हैं। सभी स्त्रियां एकजुट होकर कोशी के गीत गाती हैं और छठी मइया का धन्यवाद करती हैं। मसाला न्यूज़ ब्लॉग की तरफ से आप सभी छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं। और कामना करते हैं आप सभी का जीवन मंगलमय हो।

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