शिक्षित परिंदे बंद हैं, माचिस के घरों में। 9 से 6 की नौकरी, और मानसिक थकान में।
मन गाँव में अटका है, शरीर शहर का बाशिंदा। ताज़ा खबरें हैं यहां, तासीर अब भी बासी।
दोनों ही कमाते हैं, पर बच्चों का कौन ख्याल रखे?
टारगेट की दौड़ में लगे हैं, तन को बीमा के हवाले रखे।
यारों का संग न रहा, न न्योता, न व्यवहार। अब अपने ही घर जाते हैं, जैसे बन गए रिश्तेदार।।
एकड़ का बंटवारा कर, बेचा वर्ग फीट की आस में।
बिछड़े और पिछड़ गए, खो गए अगड़ों की पांत में।।
शुरुआत में बड़ा मज़ा है, एकाकी सपनों के संसार में।
मुसीबतें हारी हैं सदा, जब मिला है संग परिवार में।।
माता-पिता गाँव में रुकने पर अड़े, वहाँ नौकरी कहाँ मिलेगी, ये बड़े।
जिनके पास दोनों हैं साथ, उनका जीवन है शान और सौभाग्य का।।
शिक्षित परिंदे बंद हैं, माचिस के घरों में। 9 से 6 की नौकरी, और मानसिक थकान में।